सच्ची मोहब्बत
सच्ची मोहब्बत
उसकी छुट्टी रद्द हो गयी
वो घर न जा पायेगा
अपने महबूबा को दिया हुआ वादा
न अब पूरा कर पायेगा।
उसका सन्देशा भी यहाँ दूर आता नहीं
उसकी ख़बर भी कोई यहां सुनाता नहीं
उसके चेहरे बस रात को ख्वाबो में आते हैं
सब कुछ आता है बस चैन आता नहीं।
ये फ़र्ज़ है ये कर्ज़ है देश का चुकाना है
जान देकर इसकी लाज बचाना है
सोचते सोचते यही वो सैनिक
चल दिए फिर बंदूक उठाये कांधे पर
दुश्मन को मारूँ फिर जाऊं मैं घर
हुआ क्या आगे अब कैसे मैं बताऊं?
वो आया या पैगाम कोई
एक महबूबा के हाथों की मेहंदी न सूखी
उसकी मेहंदी उड़ाने वाले आया है
जो सेहरा बांध कर आने वाला था
वो कफ़न में लिपट कर आया है
मातृभूमि के इश्क़ में लिपटा
ज़िस्म आज पाकीज़ा हो गया
वो देश से वफ़ा करके
आज किसी के लिए बेवफ़ा हो गया।
