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सावन, अब के बरस तू मत आना...

सावन, अब के बरस तू मत आना...

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सावन,

अब के बरस तू मत आना,

तुम तो आ जाते हो

पर वो नहीं आता...

 

तुम्हारी  उन घनघोर घटाओं से भी कहना,

अब के बरस वो भी ना छाये,

तुम्हारे आने पर मुझे उसकी याद आती है...

 

घटाओं से बरसती बूंदे और 

उनकी छम-छम की आवाज़ 

मुझे उसकी बहुत याद दिलाती है  ...

 

खिड़की से हाथ बढ़ा कर

बूंदों को हथेलियों में 

मोती की तरह सहेजने

की कोशिश करती हूँ,

दो बूंदे आँखों से लुढ़क कर,

उन बूंदों में मिल जाती हैं...

 

मगर वो फिर भी नहीं आता

बस याद ही आती है,

दूर कहीं झूले लगे देखती हूँ,

कुछ खिलखिलाहटें 

कानों में गूंज उठती है,

वो फिर से बहुत याद आता है...

 

कुछ कागज़ की कश्तियाँ

पानी में तैरती 

दिख जाती है तो वो,

मुझे बहुत याद आता है...

 

 तो अब की बार

सावन,

अगर तुम आओ तो मेरे बचपन 

को भी लाना,

नहीं तो मत आना...

 

तुम्हारे आने पर मुझे उसकी 

भी बहुत याद आती है 

नहीं तो अपनी घटाओं को भी 

रोक लेना...


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