सात वचन
सात वचन
प्रथम वचन :
पत्नी उवाच:
थामकर तुम्हरा हाथ में सजना,
निर्झरा सी बह जाऊं।
पति उवाच:
जीवन तुझ से ही उज्जवल,
आज हदृय से मै यह कह जाऊं।
द्वितीय वचन:
पत्नी उवाच:
जानकी सी बनूगीं सजना,
हर कष्ट तुम संग सह जाऊं।
पति उवाच:
राम की तरह तुम्हे अपनाऊ,
किसी और को मै न कभी चाहूं।
तृतीय वचन:
पत्नी उवाच:
तेरे आंगन की फुलवारी को ,
दे प्रेम सुधा मै महकाऊ।
पति उवाच:
तेरे जीवन मे बन बंसत ,
तेरे तन -मन को मै महकाऊ।
चतुर्थ वचन:
पत्नी उवाच:
प्रीति ,स्नेह की डोरी से,
हर रिश्ते को मैं बाधूगी।
पति उवाच:
जिस पथ पर चलोगी तुम,
उस पथ का हर कांटा बुहारूगां।
पंचम वचन:
पत्नी उवाच:
हमारी प्रेम भरी फुलवारी मे
नवपल्लव विकसित हो संचार करे।
पति उवाच:
हर फल को छाया पहुचाऊ,
ऐसा भारी वृक्ष बन जाऊं।
षष्टम वचन:
पत्नी उवाच:
तो करू गृहप्रवेश,छोड़कर हर मै द्वेष,
जीवनभर थामकर तुम्हरे संग चलू।
पति उवाच:
तेरी मांग भरूं तेरे साथ चलूं,
यह वचन मै आज तुझसे भरूं।
सप्तम् वचन:
पत्नी उवाच:
जीवन की जब हो सांझ पिया,
तुम्हरे कांधे की मै सैर करूं।
पति उवाच:
तेरे बिन जीवन कैसा सजनी,
तेरे साथ जीऊं तेरे साथ मरूं।।
पति - पत्नी दोनों संग:
थाम के हम दोनो एक दूजे का हाथ,
इस शुभ मगंल बेला यह सभी वचन भरते है आज।।
