सांप्रदायिकता की आग लगाए हैं
सांप्रदायिकता की आग लगाए हैं
कुछ लोग सांप्रदायिकता की आग लगा रहे ,
तो कुछ लोग मस्जिद तो कुछ शिवाले बैठे हैं !
बगैर मेहनत के जो फल की चाह लिए बैठे हैं ,
कुछ खुदगर्ज ये कैसे कैसे हसरतें पाले बैठे हैं !
इधर रोज़ कमाने वाले कैसे खपकर मरते हैं ,
और उधर काला धन कमाने वाले ठाले बैठे हैं !
खून - पसीना खूब बहाते हैं जो मेहनतकश ,
उनके मुँह से चोर उचक्के छीनकर निवाले बैठे हैं !
इधर खेत में जुत रहे खुद भी मिट्टी की मानिंद ,
उधर सेठ साहूकार बहीखाता निकाले बैठे हैं !
राशन खत्म है और पैसों की भी किल्लत है ,
बिन पैसे के मेहनती इंसान बने दिवाले बैठे हैं !
ईमानदार इंसान के लिए जीना कोई आसान नहीं ,
जितना ये पैसेवाले अपने जीवन को संभाले बैठे हैं!