रुकना नहीं
रुकना नहीं
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रुकना नही, झुकना नही,
थोड़ी उलझन में मै पड़ा,
ज़िन्दगी अपनी सवारने
में ख़ुद-ही-ख़ुद से मै लगा,
ज़ज़्बा थोड़ा हिलने लगा,
थोड़े कदम लड़खड़ाने लगे,
शब्द वहीं मेरे सारे आज
पन्नों पर सिमटे बिखरें है,
टूट चुका है, दिल थोड़ा सा,
मन भी अब थोड़ा अनसुलझा
मेरा लगने लगा है, समय से
अब थोड़ा मै पीछें हुआ हूँ,
पर मेरे हौसलों की उम्मीद
आज भी कायम रहती है
क्यूँकि अभी मुझको रुकना
नहीं, झुकना नहीं, हिम्मत
अपनी कभी हारना नहीं,
समझ लो कुछ कहानी यूँ
"हार्दिक" की, आंधी तूफाँ
के पहले ही शांति हमारी।
