STORYMIRROR

Rupesh Kumar

Others

2  

Rupesh Kumar

Others

रोशनी की चाह मे

रोशनी की चाह मे

1 min
207

रोशनी की चाह मे , आंखे चली गईं ,

जैसे ढली है साँझ, बिजली चली गई ,


सूरज पर लगा चाँद चँदा लजा गया ,

मौसम हुआ उदास ,रातें खाली गईं ,


वे दिन थे कभी रात - दिन एक साथ के ,

ऋतुओं के रुख देखकर , तुम भी चली गईं ,


चेहरा हुआ झूलसकर ऐसा धुआं धुआं ,

हेमंती बादलों की बूंदे चली गई ,


खंजन नयन से सूर के मिली थी दिव्य - दृष्टी ,

रूपेश ज़हाँ में दृष्टियाँ यू हीं चली गईं !


Rate this content
Log in