रोशनी की चाह मे
रोशनी की चाह मे
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रोशनी की चाह मे , आंखे चली गईं ,
जैसे ढली है साँझ, बिजली चली गई ,
सूरज पर लगा चाँद चँदा लजा गया ,
मौसम हुआ उदास ,रातें खाली गईं ,
वे दिन थे कभी रात - दिन एक साथ के ,
ऋतुओं के रुख देखकर , तुम भी चली गईं ,
चेहरा हुआ झूलसकर ऐसा धुआं धुआं ,
हेमंती बादलों की बूंदे चली गई ,
खंजन नयन से सूर के मिली थी दिव्य - दृष्टी ,
रूपेश ज़हाँ में दृष्टियाँ यू हीं चली गईं !