रंग प्रीत का ऐसे चढ़े
रंग प्रीत का ऐसे चढ़े
रंग प्रीत का ऐसे चढ़े...,हर रंग फीका लगे,देख लाल लाल गुलाल अबीर
चंचल मन कैसे हो धीर गंभीर..!!
उजली उजली पीर की आंचल पर,फागुन की बावरी प्रीत के छीटें पड़े
दुनिया रंग और गुलाल से भीगी है,हम किसी की आंखों से भींगे खड़े..!!
रंग प्रीत का ऐसे चढ़े..!!!
हमने अकाश ढूंढा पाताल खोजा,हमें हमारा वो खुदरंग ना मिला..,
तुम एक बार लगा कर जो चले गए,हमें गालों पर दुबारा वो रंग ना मिला..!
रंग प्रीत का ऐसे चढ़े..!!
उसकी रंगों वाली इस दुनिया में,नियति अपने कठोर रंग लिए तनी है,
हमसे पूछो हमारी बाहर–ए– होली ,आधी राधा आधी श्याम सी बनी है..
रंग प्रीत का ऐसे चढ़े...!!