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Nitu Mathur

Others

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Nitu Mathur

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रहम

रहम

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ज़िन्दगी जो घूमे है, कभी गोल कभी तिरछी

डोले है पटरी की तरह, कभी मिली फिर बिछड़ी,


कभी लगे अपने ही बस में तो है.. कभी छूटी सी

हर सांस अंदर बाहर.. लगे है जैसे रुठी रुठी सी,


आने वाले नए रास्ते की खुशी है कम

जो छूटी गलियां पीछे हैं...उनका है गम,


अब जाने कौन सा मोड़ कहाँ ले जाए

रह रह के मुझे यही फिक्र सताए,


ऐ ज़िंदगी..अब तो ज़रा थम, ले थोड़ा दम

भागते पहियों से उतर जाएं...

बेफिक्री से खामोश चलें दो क़दम


कहीं कोई दरख़्त की छाया ढूंढ ले

आंखें मूंदे ही, हम ज़रा अपनी सुध लें


कि थक गई है मेरी रफ्तार ...

अब तो करम कर ए खुदा..


नवाजो अपने रहमों करम से मुझे

मिले सुकून ज़रा सा ..

हर मंज़र अब जो मैं देखूं 

लगे बस मुक्कमल सा..


      


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