STORYMIRROR

Ajay Singla

Others

4  

Ajay Singla

Others

रामायण१८ ;केवट के भाग्य

रामायण१८ ;केवट के भाग्य

1 min
24K


लौटा के सुमंत्र को वो आए  

वापिस गंगा जी के तट थे  

गंगा जी हमें पार करा दो

मांगे नाव, कहें केवट से।


केवट बोले सुना है मैंने

चरणों की जो धूल तुम्हारी

बदल देती शिला को स्त्री में

स्त्री बन जाए नाव हमारी।


रोजी रोटी है  इससे चलती

अगर हुआ ये, लुट जाऊँगा

उस पार अगर तुम जाना चाहो

पहले चरण मैं धुलवाऊंगा।


उतराई भी तुमसे न माँगूँ

बस यही विनती ,आज्ञा दो मुझे

प्रेम वचन सुन प्रभु थे बोले

करले भाई, जो करना तुझे।


कठोते में भरकर जल लाया

परिवार सहित चरणोदक पिया

भवसागर हुए पार पितृ सब

गंगा जी को पार किया |


चरण स्पर्श कर हर्षित गंगा

देखे प्रभु को और सेवक को

नाव से उतरे, प्रभु संकोच में

कुछ भी न दिया है केवट को।


अंगूठी उतार के दी सीता ने

बात राम के मन की जानें

रामचंद्र कहें केवट से

उतराई ले लो, वो न मानें।


केवट ने पकडे चरण प्रभु के

हे नाथ, मैंने पा लिया सब कुछ

बहुत आग्रह किया सभी ने

नहीं लिया था फिर भी कुछ।  


राम ने विदा ली केवट से,कहा 

निर्मल भक्ति मेरी पाओ

निषादराज से वो थे बोले

अब तुम भी अपने घर जाओ।






Rate this content
Log in