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Randheer Rahbar

Others

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"राह अपनी मैं चला"

"राह अपनी मैं चला"

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कश्मकश का है

सफ़र ये ज़िन्दगी,

रण में जो धीर हो,

तो होगी बुलंदगी।


डराए मुझको जमाना,

मैं क्यों डरूँ ?

ख़ूबी ये मुझमें,

तो धीर क्यों न मैं धरूँ।


दुनिया उसी की है,

जो ख़ुद में सब ढाले चला

मौसम बदले तो क्या ?

राह अपनी मैं चला I


कपटी राहें तो क्या ?

छल न मुझे सकें,

मन में साधा है जो,

इरादे वो बदल न सकें I 


भला - बुरा पहचानता हूँ.

इसी दुनियाँ में हूँ पला बढ़ा,

ज्वार को खबर तो क्या ?

राह अपनी मैं चला I


सोना तपे,

कुंदन बने I

है सच्चा राही वही,

चले जो बिना रुके।

 

नज़रों में है तिर रही,

अटल मंज़िल मेरी,

इम्तिहां की डगर तो क्या ?

राह अपनी मैं चला I


बढ़ते गए की यूँ कदम,

और कुछ साथी मिले I

कथा कही , व्यथा सुनी,

ज़ख़्म कुछ तो भरे,

कुछ हुए हरे I


आई मंज़िल करीब,

काफ़िला बिख़र चला I

बिछड़े हुए का ग़म क्या ?

राह अपनी मैं चला I


 


         


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