पतंग और डोर
पतंग और डोर
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जब बात आई पतंग और डोर की,
मन में जगाए उम्मीद और नए मोड़ की।
मकर संक्रांति मनाई जाती है,
पतंग संग डोर उड़ाई जाती है।
खुले आसमान में उड़ती जाती है,
डोर छोड़ी तो वह कट जाती है।
ऊंचे ऊंचे अरमानों के संग उड़ने का शौक रखती है,
उसे कहते हैं पतंग जो कभी नहीं डरती है।
हवाओं के साथ डोरो का हाथ थामे,
पेड़ों से भी ऊंचा उड़ जाती है वह आसमां में।
मन में ना कोई डर ना कोई भय रखती है,
मन में उड़ने का प्यारा सा तजुर्बा रखती है।
