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Ajay Singla

Children Stories Fantasy

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Ajay Singla

Children Stories Fantasy

प्रलय

प्रलय

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सारा दिन जब काम कर के

रात को मैं घर गया,

पीछे पीछे एक साया

मैंने देखा, डर गया।


दूसरे ग्रह का एक प्राणी

मुझसे यूँ कहने लगा ,

इस ग्रह पे हम भी रहते

जिसको तुम धरती हो कहते।


बस तुम्हे पता नहीं है

सालों से हम रह रहे ,

धरती ने हमें घर दिया

हम तुमको कुछ न कह रहे।


हमने अपना ग्रह था खोया

इक सदी अब हो गयी,

गलतियां हमसे हुईं

और अपनी माटी खो गयी।


धरती पे भी वैसा ही

तूफ़ान इक अब आएगा,

आंधी होगी,बाढ़ होगी

और सब मिट जायेगा।


प्रदूषण से धरती माँ की

जो ये हालत हो गयी,

हमने धरती को है लूटा

अब सजा तय हो गयी।


बात सुन के उस छवि की

मन बहुत आधीर था ,

सच्चाई उसकी बातों में थी

मामला गंभीर था।


कुछ दिनों के बाद उसकी

सभी बातें सच हुईं,

एक बड़ा सैलाब आया

और भगदड़ मच गयी।


मुझको भी तब भाग कर

घर से यूँ आना पड़ा ,

घने जंगल लांघ कर

पहाड़ों पे जाना पड़ा।


भाग कर फिर थक गया तो

पेड़ के नीचे खड़ा,

मैंने तब फिर मुड़ के देखा

बाघ था पीछे पड़ा।


पेड़ पे मैं चढ़ गया

और सोचा ये क्या हो गया,

डर था, पर इतना थका था

नींद गहरी सो गया।


आँख खुली तो देखा बैठा

सांप ऊपर शाख पर ,

फूं फूं कर के फिर वो बोला

गुस्सा उस की नाक पर।


''अपना घर तुम छोड़ कर

मेरे घर में आ गए,

घना जंगल घर था मेरा

पहले ही तुम खा गए ''।


डर के मारे सिहर के मैं

पेड़ के नीचे गिरा,

दौड़ा सरपट मैं वहां से

जैसे कोई सिरफिरा।


इतने में फिर धरती सारी

पानी से ही भर गयी,

मैंने सोचा प्रलय है ये

दुनिया सारी मर गयी।


तभी घंटी इक बजी और

मैं सपने से जगा ,

पर यही सच्चाई है

मन को धक्का ये लगा।


चाहते हो तुम गर के ये

धरती न बर्बाद हो,

थाम लो प्रकृति का दामन

उसमे तुम आबाद हो।


 


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