प्रकृति का शिशु है वह
प्रकृति का शिशु है वह
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फूल को खिलने दो
रंगीन हो या रंग हीन,
गंधमय हो या गंधहीन,
घास पर खिले या शाख पर,
जल में खिले या स्थल में,
नगर-वन-ग्राम में
उसकी अपनी निजी
पूरी पुष्पवत्ता के साथ
खिलने दो फूल को।
मंद मंद समीर संग,
हौले हौले हिलने दो,
लहरों के साथ साथ
ताल में तिरने दो,
करने दो जीवन को
रंग में,रस में,गंध में,
नाद में स्पर्श में,
स्वयं को रूपायित
प्रकृति का शिशु है वह फूल,
और शिशु भी फूल है।