परिलोक
परिलोक
दे दो मुझको इक वरदान
सुन्दर परी मैं बन जाऊँ
परिलोक की सैर कर आऊँ
मन का प्यास बुझा आऊँ।
रोज रात जब सोती हूँ
परियों के सपने आते हैं
जब उनको छूने लगती हूँ
नींद मेरी उड़ जाती है ।
दिन भर मन न लगता है
उनकी याद ही आती है
सुन्दर से मैं पंख लगाकर
परिलोक में जाना चाहती ।
आसमान में उनका महल
फूलों की उनकी बगिया प्यारी
बस मुझको पंख लगा दो
घूमूँ मैं रंग बिरंगी बगिया सारी ।
उनका लोक है बहुत प्यारा
हर चीज का है रूप न्यारा
मधुर संगीत सुनाई देता
मेरा भी मन गाने को करता ।
बस प्रभु सुनो मेरी पुकार
पंख मुझे दे दो, दो- चार
बस एक बार मैं उड़ जाऊँ
परिलोक की सैर कर आऊँ।
