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पन्नों में क़ैद में

पन्नों में क़ैद में

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पन्नों में क़ैद में

 

मुझ पर लिखी तुम्हारी अनगिनत कवितायेँ ,

जो कलम से तो गाहे बगाहे आज़ाद हुई थी

पर पन्नों में क़ैद जो कर ली थी  तुमने

उन ही कविताओं के पन्नों में मुझे दफ़न करके

तुमने किसी फाइल में  मुझे दबा कर बाँध दिया .

सुनो मुझे आज़ाद कर दो इस कैद से अब तो

दम घुटता है इन शब्दों से भरे पन्ने में दबे हुऐ ,

अब तो ये अपने सफ़ेद रंग को खो पीले हो चले है

इससे पहले की ये हो जाऐ रंग उड़े धुँधले पन्ने

इन कविताओं से मुझे बाहर निकाल लाओ 

मुझे खुली हवा में फिर से साँस लेने दो अब

ज़िंदगी की बात ज़िंदगी से अपनी कहने दो अब .

 

 

 

 


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