कितनी दामिनी और ?
कितनी दामिनी और ?
कितनी दामिनी और ?
एक दामिनी गई भी तो क्या
रोज नयी दामिनी मर रही है
इस बेपरवाह समाज के लिए
जीवन न्योछावर कर रही है,
रोज हों रही है ऐसी घटनाये
समाज के गंदे चहरे को भला
अब कौन कहीं दफनाए ??
रोज कहीं न कहीं हों रहा है
लड़कियों पर अत्याचार
फिर क्यों है लड़कियों के साथ
यू दोगला अपनों का ही व्यवहार
जब घर में भी कर देते है
लड़कियों पर कुछ लोग वार
किससे जाके करे भला वो
अपने दर्द की पुकार ?
वो व्यर्थ ही सिर्फ़ इसलिए
अपनी जान गवाती है ,
लड़की के रूप में जन्मी है वो
इसलिए वो कई रूप में
जिन्दा जलाई जाती है .
कर दिया तुमको भी उस
दरिंदे ने आग के हवाले
कैसे कोई भला लड़कियों को
इस नरक से बहार निकाले.
वो समाज के ही लोग
जान लेते है और लेते जा रहे है ,
बच्चियों को बेमौत ही
काल के हाथ देते जा रहे है,
कोई कुछ करे, कोई उपाय निकाले
किसी तरह लड़कियों को
इस नरक की आग से निकाले,
ये जी सके निर्भीक निर्भय होकर
न बीते जनम लड़की का
दुनिया में सिर्फ रो रो कर ,
आओ प्रण करे लड़किओं को
फक्र से जीने के राह दिखायेंगे
इनके लिए एक स्वच्छ और
सुन्दर सा जहान बनायेंगे |