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Shweta Chaturvedi

Others

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Shweta Chaturvedi

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पंक्षी उड़ चला

पंक्षी उड़ चला

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है अभी उजाला 

जहाँ चाहा उस डाल पे ठहरा 

फैलाए पंख आनंद के 

विचारा अनंत नील गगन में

 

हरितम प्रकृति के झूलो में झूला 

पर सताती तो होगी

उसी घरौंदे की याद 

जहाँ बंधी उसके हृदय की डोर


वियोग करता तो होगा विचलित 

जहाँ छूटा उसका सबकुछ

जहाँ उसका बसेरा 

तन स्वाधीन, मन बंधनतम 


साध अपना गन्तव्य

वो फिर से आगे बढ़ा 

पंक्षी उड़ चला 

कि कहीं साँझ ढल ना जाए... 



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