पलायन की मार
पलायन की मार

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गाँवों पर पड़ी जब से
पलायन की मार प्यारे
तब से रो रहे हैं
वतन के गाँव सारे।
खेत और खलिहान सब
सो गये हैं नींद में
बचे-खुचे लोग सब
जी रहे उम्मीद में
गाँवों ने जब निभाई
अनुकरण की रस्म प्यारे
तब से रो रहे हैं
वतन के गाँव सारे।
परंपरा गायब हुई
खो गई सब रीतियाँ
जी रहीं अब भी वहाँ
स्वच्छंद हो कुरीतियाँ
गांवों ने जब उतारी
निज सभ्यता की टोप प्यारे
तब से रो रहे हैं
वतन के गाँव सारे।।