फिर रहा हूँ भागा- भागा
फिर रहा हूँ भागा- भागा




फिर रहा हूँ भागा-भागा,
मैं अभागा।
फिर रहा हूंँ भागा-भागा,
मैं अभागा।
है कहांँ वह नीर-निर्झर,
जो तृषा मेरी मिटा दे।
है कहांँ वो अन्न-अब्धि,
जो क्षुधा को शांत कर दे।
हर गली से, हर कली से,
मैंने मांँगा-मैंने मांँगा,
फिर रहा हूंँ भागा-भागा,
मैं अभागा।।
है किसे परवाह मेरी,
प्यार के दो बोल बोले।
है किसे फिर चाह मेरी,
दे तसल्ली, हम जो रो लें।
कोई ना आएगा पगले,
उड़ चले जा दूर कागा,
फिर रहा हूंँ भागा-भागा,
मैं अभागा।।
बारहमासों क्यों बरसती हो,
अभागिन आंँख तुम।
क्यों प्रतीक्षा कर्ण तुझको,
के मधुर-स्वर लो तुम सुन।
रसना रस ना तुझे मिलेगा,
गा फिर भी तू गा, गा,
फिर रहा हूंँ भागा-भागा,
मैं अभागा।।
मैं ही वंचित हूंँ, नहीं तो,
जग ये सारा स्नेह-सींचित।
ओसकण के योग्य भी ना,
हूँ अकिंचित, मैं अकिंचित।
भाग्य-हीनों को मिले ना,
राधा-कृष्णा-स्नेह-धागा,
फिर रहा हूंँ भागा-भागा,
मैं अभागा।।
बांँटते खुशियों को सारे,
कौन है जो दुख को बांँटें।
पुष्प पाना चाहते सब,
कौन है जो कांँटें छाँटें।
रूप-धन-बल चाह सबको,
हृदय; हीन से, किसका लागा।
फिर रहा हूंँ भागा-भागा,
मैं अभागा।