“ फैसले और फासले “
“ फैसले और फासले “
फैसले और फासले के बीच की दूरी एक ऐसी जटिल और संवेदनशील स्थिति होती है जिसे समझना और महसूस करना आसान नहीं होता। जब आप किसी निर्णय के तहत किसी व्यक्ति या परिस्थिति से दूर होते हैं, तो वह निर्णय केवल एक पल की बात नहीं होती, बल्कि इसके पीछे कई भावनाएँ, संघर्ष, और विचार होते हैं।वह समय होता है जब आप आशा और हसरत के बीच खुद को झूलता हुआ पाते हैं। यह वक्त उम्मीदों से भरा होता है—एक उम्मीद कि शायद वह शख्स या वह हालात फिर से आपके जीवन में लौट आएंगे। यह उम्मीद कई बार दिल के गहरे कोनों में बसे ख्वाबों से जुड़ी होती है, जो आपको उस दौर से पार पाने की शक्ति देती है।
यह दौर हमें बार-बार उन पुरानी यादों में ले जाता है, जब सब कुछ ठीक था और आप उस इंसान या परिस्थिति के करीब थे। हसरतें वह होती हैं जो हमारे दिल में अब भी जीवित रहती हैं, जो उस व्यक्ति या परिस्थिति को फिर से पाने की ख्वाहिश होती हैं। उम्मीदें हमें यह विश्वास दिलाती हैं कि शायद एक दिन वह इंसान या स्थिति फिर से लौट आएगी।
लेकिन हर उम्मीद का अंत हमेशा वैसा नहीं होता जैसा हम चाहते हैं। यह कड़वी सच्चाई की ओर इशारा करती है, जब हमें समझ आता है कि हम चाहे कितनी भी हसरतें रखें या उम्मीदें बांधें, हर चीज़ हमारे काबू में नहीं होती। कभी-कभी, जिनकी हम ख्वाहिश करते हैं, वो वापस नहीं आते, और यह हमारे नसीब का हिस्सा होता है। यह उस दर्द को बयान करता है, जब आपके मन में हसरतें होती हैं, लेकिन जीवन की सच्चाई आपको कुछ और ही सिखाती है।
यह दौर हमें सिखाता है कि जीवन में हर चीज़ हमारे हाथ में नहीं होती। फैसले हम लेते हैं, लेकिन नसीब उन फैसलों को अपने तरीके से आकार देता है। फासले और फैसले के बीच का यह वक्त एक यात्रा है, जहाँ हम अपने भीतर की उम्मीदों, हसरतों और वास्तविकताओं से गुज़रते हैं, और अंत में वही होता है जो हमारे नसीब में लिखा होता है।
"फैसले और फासले के बीच का,
एक दौर था बोह हसरतों और उम्मीद का"
"वो लौट कर आएगा यह तेरी चाह थी,
उसका नहीं आना यह तेरा नसीब था"
फैसले और फासले के बीच,
एक वक्त था हसरतों का अतीत।
दिल में बसी थीं लाखों उम्मीदें,
वो लौटेगा, यही थी तमन्नाओं की रीत।
हर रोज़ एक ख्वाब सजा,
उसकी राहों में नज़रें बिछा।
दूरियां मिट जाएंगी, यह सोचकर,
दिल ने फिर से उसे बुलाया।
पर वक्त ने जो सिखाया,
नसीब का रास्ता अलग दिखाया।
चाहते हुए भी, वो नहीं आया,
आखिर यह था नसीब का लिखा साया
अब हसरतें चुप हैं,
उम्मीदें भी थमी हैं।
फैसलों की कश्ती में बैठे हैं,
फासलों की लहरें अब गहरी हैं।
मगर दिल ने कभी उसे भुलाया नहीं,
फैसले और फासले का सफर आसान नहीं।
वो लौटेगा, यह सोच अब भी बाकी है,
क्योंकि हसरतें कभी हारती नहीं।
फासलों ने हमें जो सिखाया,
वह सब्र का था एक नया साया।
आँखों ने चाहा, दिल ने पुकारा,
पर नसीब ने चुप रहकर इशारा किया।
हर रात सितारों से बातें हुईं,
चाँदनी में उसकी यादें सजीं।
मन ने कहा, वो आएगा फिर,
पर सच ने धीरे से दिल को छुआ।
वो लौट कर आएगा, ये दिल की आवाज़ थी,
मगर उसका न आना, किस्मत की राग थी।
फैसले हमारे थे, मगर मंज़िल नहीं,
फासले बढ़ते गए, और वो दूर हो गईं।
अब वो यादें हवा में घुल जाती हैं,
कभी-कभी दिल में हलचल मचाती हैं।
फैसले और फासले के इस सफर में,
ख्वाहिशें बस अब मौन रह जाती हैं।
लेकिन फिर भी एक उम्मीद बाकी है,
कहीं न कहीं वो राह देख रही है।
फासले चाहे रहें जितने भी बड़े,
वो लौटेगा, यह सोच अब भी बाकी है।