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कुमार संदीप

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कुमार संदीप

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पेड़ की पुकार

पेड़ की पुकार

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पेड़ की पुकार,

मत काटो मुझे

मेरा भी तो जीवन है,

क्या मुझे जीने का अधिकार नहीं?

मैं तो हर परिस्थितियों में

साथ रहता हूँ

मैं पेड़ हूँ मुझे जीने दो।


मैं तो हर वक्त साथ देता हूँ,

तेरे पिता के बुढ़ापे का सहारा हूँ,

तेरे बच्चों का खिलौना हूँ,

बेटियों की डोली का आधार हूँ,

मैं पेड़ हूँ मुझे जीने दो।



मेरे बिना सब कैसे रह पाएंगे,

मैं हूँ तभी जग है,

फिर क्यों तुम मुझे

चंद पैसों की लोभ में,

आशियाने बनाने के लिए

मेरे जीवन का अंत करते हो

मैं पेड़ हूँ मुझे जीने दो।



आशियाने बनाने के लोभ में

तुम मुझे मार देते हो,

मैं बहुत रोता हूँ।

क्या मेरी पीड़ा का

तुम्हें एहसास नहीं,

क्या मेरे जीवन की

कोई आस नहीं,

मैं पेड़ हूँ मुझे जीने दो।



भले ही तुम 

ये महसूस न करो

पर जब बहती है हवा

मैं गीत गाता हूँ,

जब करते हो तुम मेरा अंत

मैं खून के आंसू रोता हूँ,

मैं पेड़ हूँ मुझे जीने दो।


तेरे लाल को

चलना मैंने ही सिखलाया,

तेरे माँ बाउजी के

बुढ़ापे के सहारे की छड़ी भी तो

मैं ही था,

फिर क्यों भूल गए

मेरी उदारता को

मुझ बिन

कैसे तुम जी पाओगे?

बरगद की छांव बिन कैसे सुकून पाओगे

मैं पेड़ हूँ मुझे जीने दो।




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