नव वर्ष की नव भोर
नव वर्ष की नव भोर
नव वर्ष की नव भोर है
कोकिल कलरव चहुँ ओर है।
हरी-भरी पावन वसुधा है
नीरव नील गगन बरसा है।
प्राची से झाँक रहा अरूण है
पुष्प पादप पर रश्मि किरण है।
तृण तिनको पर तुहिन वरण है
अप्रतिम सौंदर्य भरा प्रांगण है।
अनजान पथ का पथिक बनकर
जीव भ्रमण करता धरती पर।
सहोदर सहचर के संग चलकर
मिश्रित सुख-दुख सहता रहकर।
साथ मिला मित्रों का मधुकर
जग जीवन के बीहड़ पथपर।
कर्तव्यनिष्ठ पथ पर चलकर
कई दशक बीते हँस हँसकर।
आज नववर्ष की नव बेलापर
"निशा"की कालिमा से धुलकर।
शुभकामनाएं देता मन मधुकर
खुशियों से घर आँगन भरकर।
