नहीं समझ आती ये दुनिया
नहीं समझ आती ये दुनिया
नहीं समझ आती मुझे ये दुनिया दारी की रस्में
बिरादरी के खातिर खुद अपना क़त्ल कर देती है ।।
नहीं समझ आती मुझे ये दिखावटी दुनिया की तस्वीरे
समाज के खातिर अपना जनाजा खुद निकाल देती है।।
नहीं समझ आती मुझे ये बिन चाहत की इश्क़ की सिलवटे
मोहब्बत के खातिर जिस्मों में सिलवटे कर देती है ।।
नहीं समझ आती मुझे ये ज़हन में पनप रही आहत की बातें
राहत के खातिर ये लोगों से चाहत कर देती है।
नहीं समझ आती मुझे ये इन्द्रधनुश सी जिन्दगी की कहानी
पल भर रहने के ख़ातिर हज़ारों बार यूँ तड़पाती है।।
नहीं समझ आती मुझे ये काली रातों की ये सर्द हवाएँ,
इश्क़ के खातिर ये हवाओं से भी इस तरह कतराती हैं।।
