नारी की व्यथा
नारी की व्यथा
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उलझती ही जाती हूं
सवालों के जंजाल में
क्यों नारी ही
नारी की दुश्मन है
न फर्क है शिक्षा का
गांव का और न समाज का
बस डर है तो सिर्फ
मर्यादा लोक लाज का
गुजरती गई हर मोड़ से
अपनी व्यथाओं आकांक्षाओं के दौर से
न जाने क्यों फिर भी
खयाल है तो बस अपने आप का
जहां भी जब भी वह
स्वार्थ की सीमा पार करती है
नारी ही नारी की
सबसे बड़ी दुश्मन साबित होती है
