जाने कितनी मौन कथाएं
जाने कितनी मौन कथाएं
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जीवन एक अजीब कहानी,
मन है विकल, आँखों में पानी।
पीड़ामय मुस्कान अधर पर,
नित प्राणों को छलती रहती,
जाने कितनी मौन कथाएं,
मेरे मन में पलती रहती।
एक अजब पीड़ा "औ" सिसकनन,
करती रहती है मन मंथन।
,
कुछ अपनी कुछ जग की पीड़ा,
हर धड़कन में जलती रहती,
जाने कितनी मौन कथाएं,
मेरे मन में पलती रहती।
कभी शिकायत तन की मुझसे,
कभी शिकायत मन की मुझसे।
तन- मन की यह विकट लड़ाई,
अबाध गति से चलती रहती,
जाने कितनी मौन कथाएं,
मेरे मन में पलती रहती।
