नारी बनकर रह न सकी तुम
नारी बनकर रह न सकी तुम
नारी तुम बन न सकी सीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी
कर्त्तव्यों की बली चढ़ाकर मर्यादाए तुम भूल चुकी
जब नारी बन कर रह न सकी तुम सीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी ।।
भोग विलाश में डूब तू नारी किस मुख राम के स्वप्न देख रही
जब नारी बन कर रह न सकी तुमसीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी ।।
स्वप्न तुम्हारे तुम्हे वर श्रीराम मिले,कर्म जरा तुम अपने देखो ,
सुपर्णखा समान भी सर्मा जाए
नारी बनकर तुम रह न सकी सीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी ।।
माता बनकर रह न सकी तुम किस कुल की तुम लाज बनोगी
लव कुश जैसे कितने बालक का तुम जीवन बर्बाद करोगी ,
नारी बनकर रह न सकी तुमसीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी
सीता जी तो पति समर्पित तुम लालच की मूरत बन गई
निर्दयी घर की इज़्ज़त रख न सकी ,जकत की प्यारी कैसे बनोगी।
नारी बनकर रह न सकी तुमसीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी ।।
सीताजी थी जनक दुलारी पति संग वनवास रही ,
अपेक्षाए तो यहॉ बहुत है नैतिकताएं तो न भूलो प्रिये
नारी बनकर रह न सकी तुम सीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी।
