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Arvind Tiwari

Others

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Arvind Tiwari

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नारी बनकर रह न सकी तुम

नारी बनकर रह न सकी तुम

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नारी तुम बन न सकी सीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी

कर्त्तव्यों की बली चढ़ाकर मर्यादाए तुम भूल चुकी 

जब नारी बन कर रह न सकी तुम सीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी ।।


भोग विलाश में डूब तू नारी किस मुख राम के स्वप्न देख रही 

जब नारी बन कर रह न सकी तुमसीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी ।।


स्वप्न तुम्हारे तुम्हे वर श्रीराम मिले,कर्म जरा तुम अपने देखो ,

सुपर्णखा समान भी सर्मा जाए

नारी बनकर तुम रह न सकी सीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी ।।


माता बनकर रह न सकी तुम किस कुल की तुम लाज बनोगी 

लव कुश जैसे कितने बालक का तुम जीवन बर्बाद करोगी ,

नारी बनकर रह न सकी तुमसीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी


सीता जी तो पति समर्पित तुम लालच की मूरत बन गई

निर्दयी घर की इज़्ज़त रख न सकी ,जकत की प्यारी कैसे बनोगी।

नारी बनकर रह न सकी तुमसीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी ।।


सीताजी थी जनक दुलारी पति संग वनवास रही ,

अपेक्षाए तो यहॉ बहुत है नैतिकताएं तो न भूलो प्रिये

नारी बनकर रह न सकी तुम सीता रुक्मणी क्या खाक बनोगी।


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