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Vijay Kumar parashar "साखी"

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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न हों

न हों

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ये तन भले ही बीमार हो पर मन न हो

लड़ाई में हार हो पर दिल कायर न हो,

ये दिल हमारा टूटे या फिर बहुत फूटे

पर हमारा ये दिल कभी लाचार न हो,

गिरे हम एक नहीं हज़ारों बार साकी

पर कभी इसका हौसला तारतार न हो,

ये तन भले ही बीमार हो पर मन न हो,

रात के बार जैसे भोर होती है

हार के बाद जैसे जीत होती है,

वैसे ही हमारे मन का संगीत हो

सफ़लता चाहे मुझे न मिले

असफलता भले गले मिले,

पर क़भी मेरा कर्म उत्साह कम न हो

उड़ान मेरी भले ही ऊँचे आसमाँ की न हो,

पर मन में किसी को गिराने का ख्याल न हो

ये तन भले ही बीमार हो पर मन न हो!



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