मुखरित हुआ मन
मुखरित हुआ मन
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अपने मन की है यह एक बानगी ,
अपने मन के होते हैं सहस्त्र रंग !
मन के प्रेम और इसके राग से ,
कई दिग्गजों की हुई साधना भंग !
मन से ही सब हाव भाव जाते रचे ,
जो रचते रहते जीवन के हर रूप !
सतरंगी यह परिवेश है जीवन का ,
कभी छाया अंधेरा कभी छाया धूप !
लाख जतन करे मन पर होता हावी ,
मुखरित हुआ मन होता बड़ा प्रभावी !