मुहब्बत
मुहब्बत
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मुहब्बत का ऐसा असर हो रहा है
नही बाअसर अब ज़हर हो रहा है
चुराया है उसने मेरा चैन ऐसे
मेरा दिल मुझसे बेख़बर हो रहा है
कहें सब हैं मुझसे मुहब्बत है फ़ानी
हरेक मशवरा बेअसर हो रहा है
उन्हें याद करना उन्हें पढ़ते रहना
यही काम शामों-सहर हो रहा है
बसे ज्यों मंदिर में मूरत ख़ुदा की
मेरे दिल में उनका ही घर हो रहा है!!
