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मोहब्बत

मोहब्बत

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दोस्त सब किनारा करते हैं

लूट का नजारा करते हैं

ताज की सियासत में हरसू

राहबर... सितारा करते हैं


ज़िदगी किया रौशन हमने

पर नहीं शरारा करते हैं

जान जाति मजहब सबकी यूं

अमन का इशारा करते हैं


क़त्ल कर इबादत में सबकी

ये खुदा का प्यारा करते हैं

हम मगर जमाने से हरदम

हर ग़ज़ल उजारा करते हैं

और बस मुहब्बत की खातिर

हर सहर बहारा करते हैं।


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