मोह
मोह
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मोह मेरी लेखनी का
मेरे जीवन की सुन्दर कविता
जहां प्यार विश्वास और माया
मेरे ही जीवन की है रूप काया.
हैं . रिश्तों में बखूबी अपनापन
यही है..जीवन मिलन संगम.
दिल से लिखती संभलती हू..
इंद्रधनुष से रंग बिखेरती..
आसमा में बादलों और
मदमस्त हवाओं को छूती..
हवा मन को स्पर्श करती
मेरे जुनून को जगाती
कभी मुस्कारती कभी लहराती
कभी भवरे की तरह गुनगुनाती.
अपनी सरजमी पर घिरघिराती
कभी भावविभोर हो जाती
कभी मंद–मंद मुस्कारती..
इस जहां में पंख पखेरू बन..
जीवन की एक नई सरगम बन..
अपनी कविता अपनी जुबानी..
यही कविता मोह है. मेरी जिंदगानी।
