मिलती मुझे हार है
मिलती मुझे हार है
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ऐसे ही जो, हार मिले,
क्या मैं आगे, बढ़ पाऊंगी।
असफलताओं के बोझ से,
कब ऊपर, उठ पाऊंगी।
हर दिन मैं, खुद को तैयार करती,
कामयाबी की, आशा करती।
अपने मन को, हर दिन समझाती
पर मिलती मुझे, हार है।
कभी कभी लगता है अब यूं,
जीना मेरा बेकार है।।
