हरा फिर से
हरा फिर से
1 min
198
प्रकृति का रूप,
माता में समाया है।
हर कण कण में बसी,
माता की ही छाया है।
उनके इस रूप के दर्शन,
हम हर दिन करते हैं।
नवरात्रि में तो बस हम,
उनका ही सुमिरन करते हैं।।
