महाभुजंगप्रयात सवैया...
महाभुजंगप्रयात सवैया...
महाभुजंगप्रयात सवैया,सृजन- शिव वंदना
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उमा नाथ हे शेष धारी शिवानी,
सुहानी मुहानी बसे हो शिवाला ।
महाकाल रुद्रेश भूतेश मृत्युं,
जया प्राण दानी धरे मुण्ड माला ।।
त्रिनेत्री खुले भस्म हो देख चारों,
दिशा में बदी का यहीं बोलबाला ।
जयी हो जयी हो विजेता प्रणेता,
त्रिलोकी जपो नीलकंठी कपाला ।।
सुनो रे सुनो रे गुणों की बखानी,
गुणी धार गंगा बहे रे जटाला ।
उन्हीं सा न हो देव गंधर्व ज्ञानी,
हुए व्योम में कौन ऐसा कृपाला ।।
सती हैं प्रिया दक्ष से हों पराया,
शिवा कूदते क्रुद्ध भोला निराला ।
जयी हो जयी हो विजेता प्रणेता,
त्रिलोकी जपो नीलकंठी कपाला ।।
भजो रे भजो रे सुयोगी वियोगी,
उसी सा न कोई उतुंगी उताला ।
धतूरा भभूता मसाना सुहाता ,
उसे मस्तमौला हिमाद्रे हिमाला ।।
सभी प्रेम से मांग लो आशुतोषी,
हितैषी बना वो मिलेगा निराला ।
जयी हो जयी हो विजेता प्रणेता,
त्रिलोकी जपो नीलकंठी कपाला ।।