मेरी पहचान
मेरी पहचान
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मैं ज्योति विकल
ज्योतिपुंज से निकली
उसी मे पुन: समाने को।
भाव, जीवन में जीने उतरी,
अनुभव का अमृत पाने को।
मरीचिका माया की प्रतिपल,
छले मनस देह मुरझाने को ।
सत्य हुआ जब से उद्भासित,
मस्तिष्क लगा झुठलाने को।
भाग बडा, हुई कृपा अनंता
अमूर्त वचन समझाने को।
अनवरत जन्म, नवल भूमिका,
हैं सुपथ शिव मे मिल जाने को।
