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Shobhit Bahuguna

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मेरी मधुशाला

मेरी मधुशाला

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तन मन को तरकर रहे लेकर हाथ में जाम का प्याला।

मोगेंबो को खुश कर रही आज शहर शहर मधुशाला।

मंदिर बंद हो चाहे धाम या विद्यालयों पर लटके ताला।

हे सरकार के आर्थिक संरक्षक तुम बंद न करना मधुशाला।


पत्नी रोए या बहन बेटी घर में ना हो खाने को निवाला।

हे भरतवंश के वर्तमान शासक तुम चलाते रहना मधुशाला।

विकास रुके चाहे यौवन भटके गड्ढे में गिरें या पुकारे खाला ।

हे प्रजातंत्र के संरक्षक तुम खोले रखना मधुशाला।


रामायण के वचन टूटे चाहे महाभारत का धर्म

विभीषण जैसा भाई हो या शकुनी जैसा साला।

हे आर्यवर्त के आर्यपुत्र तुम खुलवा के रखना मधुशाला ।


राम भरत के वंशज रूठे चाहे कृष्ण मथुरा का ग्वाला ।

हे अमर भारती के वीर सपूत तू बंद न करना मधुशाला।


धृतराष्ट्र को खुश कर रही हर शहर गांव में बिकती हाला।

राज्य का राजस्व दिन-रात बढ़ाती जगह-जगह खुलती मधुशाला।

घर-घर सीता की अग्नि परीक्षा हो चाहे बुझे भरत वंश की ज्वाला।

हे मानवता के अमर सपूत खुलवाते रहना मधुशाला।


शहर शहर द्रौपदी का चीर हरण हो चाहे मनुज का मुंह हो काला।

हे लॉक डाउन के कर्मयोगियों उठो जागो चलो मधुशाला।



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