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मेरी मां

मेरी मां

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मां!
तुम मेरे लिए
कितना कुछ सह जाती हो 
अपमान सहकर भी
आंसू की बूंद निगल जाती हो 
हंसती रहती हो सदा
सबके सामने
मुझसे छिपकर आंसू बहाती हो 
ना करे अन्याय कोई मुझसे 
शायद इसलिए तुम 
हर अन्याय को सह जाती हो 
धरा सी छाती पर रखे 
पत्थर को भी नहीं दिखाती हो 
दुखती रग छेड़ देता है 
यदि कोई तुम्हारी
तो भी मुस्कुराहट का 
मलहम लगा लेती हो 
रस्सी पर चलने वाली 
किसी नटी की तरह
तुम भी हर बार
गिरने से मुझको बचा लेती हो 
मां तुम वही हो जो
प्यार से बनी, ढली वेदना से
सींची गई आसूं की धार से 
मां तुम ना तो अमीर हो 
ना गरीब हो
ना छोटी हो
ना बड़ी हो 
मां तुम तो बस 
मां हो !
मेरी मां!!


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