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मेरे घाव नही भरे

मेरे घाव नही भरे

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दिन बदल रहे हैं और साल भी

मौसम बदल रहा है और एहसास भी

धीरे धीरे बहुत कुछ बदल रहा है…

लोग भी…रिश्ते भी…पर

हम अनाड़ी...

वैसे के वैसे रह गए

नहीं बदल पाए खुद को

अजीब से हैं ये ज़ख्म

दिखते भी नही, पर

ये मत समझिए

कि दुखते नही!

दोस्त समझो जिसे

वो फरिश्ता भी हो सकता है

और दुश्मन भी

अजीब से हैं ये रिश्ते

अमृत समझो जिसे

वो ज़हर भी हो सकता है

और ज़हर जो लगे

वो अमृत भी हो सकता है

इश्क़ की दुनिया है जनाब

यहाँ कुछ भी हो सकता है!

अपनो के दिए घाव है

जो अब तक हरे हैं

बात बस इतनी सी है कि,

अब “तुम ” ही

"तुम" से नहीं रहे

और मेरे घाव नही भरे।


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