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Vijay Kumar parashar "साखी"

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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मेरा डर

मेरा डर

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मुझे डर लगता है खुद से

आईने की ताकती नज़रों से

ना डर है मुझे अंधेरे से

ना डर है मुझे ज़माने से।

मुझे डर लगता है दगाबाजों 

डरता नहीं हूं बुरे ख्वाबों से

मुझें डर लगता है,झूठे वादों से

मुझे डर लगता है खुद से

ना शौक है पैसे कमाने का

ना शौक़ है किसी तराने का।


मुझे डर लगता है 

खूनी तीर कमानों से,

ना डर है मुझे चलने से

ना डर है मुझे राह के शूलों से

मुझे डर लगता है बस फूलों से।


मन्ज़िल वैसे ही दूर है मुझसे,

जैसे की फ़लक दूर है धरती से,

फ़िर भी फ़लक को मिला दूंगा धरती से।

पर मुझे डर लगता है आलस्य से

ना डर है मुझे मरने से

ना ख़ुशी है जिंदा होने से,

मुझे डर लगता है,

बदनामी की कालिख से,

मुझे डर लगता है खुद से।


मुस्कुराकर जीना चाहता हूं

हर गम को पीना चाहता हूं,

पर मुझे डर लगता है,

किसी का दिल दुखाने से,

खुद रो भी लूँ,

कोई गम नहीं है

दूसरे खुश रहे,

ये खुशी भी कम नहीं है।


मुझे डर लगता है पराये आंसुओं से,

खुदा बस तू इतना रहम कर देना

भले मेरी जिंदगी को तू कम कर देना,

इतनी शक्ति देना मुझे तू,

सच की रोशनी में भले

जिंदा जल जाऊँ,

कभी हार न मानू अंधेरे तुझसे।

मुझे डर लगता है अंधेरे में भटकने से

मुझे डर लगता है खुद से,

आईने की ताकती नज़रों से।



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