मेरा अस्तित्व
मेरा अस्तित्व
जन्म ली हूँ, मैं आज
बन बेटी तेरी माँ,
पापा भी खुश हैं
शायद,
तू तो, खुश है ना माँ
कुछ चेहरे,
लगते क्यों बुझे-बुझे से,
छोड़ो तुम तो देख रही हो
प्यार से मुझ को मेरी माँ।
आज बोली,
जब ख्याल रखने भाई का,
खुद को बड़ी समझने,
लगी हूँ, माँ
सारा घर का काम भी
तो मैं, अब संभाल लेती हूँ,
है, ना माँ
तू हँस कर बड़ी हो गई
मेरी बेटी कहती माँ।
लाते जब पापा कुछ भी,
सबसे पहले तू मुझ को देती,
कहती, भाई से बहन बड़ी है
तब,
कितना खुश हो जाती
मैं माँ।
जब कभी तू पापा से करती,
मेरी शादी की बात,
कहती, जल्दी कर दो
इसके पीले हाथ
तू कहती बातों - बातों में
पराये घर की है,
कितना देर करोगे,
तुझे इस चिंता में देख,
मैं कितना रोती माँ।
आज पूछूँ,
तुमसे मैं,
जन्म दिया ,
हम सबको तूने,
पाला बड़ा किया तूने,
एक पल में ही क्यों,
हो जाती बेटी पराई माँ,
माँ बाप का अंश उतना मुझ में,
जितना मेरे भाई में,
फिर क्यों हूँ ?
मैं ही केवल पराई माँ।
सब छोड़ जाउंगी, उस घर
जिसे ना अब तक
जानी मैं,
नये लोग, नया सब कुछ,
फिर अपनाऊं मैं,
तू सब जिसको चाहे,
साथ फेरे उसके लगाऊँ मैं,
जीवन भर का रिश्ता ,
उसके साथ निभाऊं मैं,
सारी बातें सही है, माँ
पर तेरे लिए क्यों? पराई मैं
मुझे पता है,
रोती तू भी जी, भर
ना कभी दिल से
कहा कुछ भी,
क्योंकि तूने भी
यही सहा है माँ।
सब जगह पढ़ी मैं,
नारी अबला, नारी दुर्बल,
पर तू बता क्या?
जीवन नारी का जी सकता
कोई पुरुष है माँ,
नारी शक्ति, नारी बल
देती पुरुषों को,
जीने का संबल,
जीवन नारी का
कठोर तपस्या ,
जी सकता ना कोई नर।
नव जीवन,
नव उत्पत्ति,
नव सृजन,
नव रूप निरंतर,
है, केवल नारी बस में
तब क्यों ? ऐसा जीवन माँ
कठोर लगेंगे बातें मेरी,
पर ना दुखी होना माँ,
विदा तेरे घर से होऊँगी,
पर जाऊँगी ,
किस घर में मैं,
कौन सा घर मेरा,
ये तो बस,
बतला दो माँ,
ना पुत्र मेरा,
ना घर मेरा,
मेरा अस्तित्व,
समझा दो माँ।
