मौसम ने बदली है करवट
मौसम ने बदली है करवट


धरती की छाती चीर के आज
मेरे आँगन में
दो नन्हे अंकुर फूटे हैं
मौसम ने फिर बदली है करवट
अंबर पर बदली घिर आई है
दिन की तपिश शीतल जल बनकर
धरती पर पिघल रही है
अलसायी प्रकृति भी नींद से
अपनी उबर रही है
कल तक सूखे पड़े खेतों में
नई मादकता छाई है
वो खेतिहर के शुष्क होठों पर
तृप्त आर्द्रता लाई है
मौसम ने बदली है करवट
अंबर पर बदली घिर आई है
सतरंगी धाराओं में बहकर
वर्षा कणिकाएँ छँट कर
फिसल रहीं हैं पत्तों पर से
बूँदों बूँदों बँट कर
ताल तलैया पोखर भी सारे&n
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भरे नीर से पल में सारे
गीली मिट्टी के कण कण से
फूटी सौंधी-सौंधी सुगंध है
मौसम ने बदली है करवट
अंबर पर बदली घिर आई है
सन सन करती हवा बहती ये
मीठी राग सुनाती है
इधर-उधर को चलती पल-पल वो
चंचल बाला सी इठलाती है
भीगो के सबके तन-मन वृष्टि ये
भीगो रही सारा अंचल है
देख प्रकृति की भरी गोद ये नयनों में
आनंद अश्रुजल है
धरती की छाती चीर के आज
मेरे आँगन में
दो नन्हे अंकुर फूटे हैं
मौसम ने फिर बदली है करवट
अंबर पर बदली घिर आयी है