मैं मैं है
मैं मैं है
मैं एक पहेली है
मैं अपनी इस पहेली को सुलझाये कैसे !
मैं क्षितिज हुआ
पर पहुँच से दूर
मिलने का भ्रम हुआ !
मैं देख रहा है
धरती और आकाश के रूप में
मैं - मैं को एकाकार होते
पर मैं समूह नहीं
क्षितिज दिखे कैसे !
मैं दूर है
भागना होगा
मैं यूँ ही नहीं मिलता
मैं में उतरना होता है
उतरोगे नहीं
तो युग भी भ्रमित
वेद-ऋचाएँ भ्रमित !
मैं ... भ्रम है अहम का
क्रोध - मैं की विकृति है
मौन - मैं के प्राप्य की पहली सीढ़ी ...
मैं भूलभुलैया
मैं विस्तार
मैं मृत्यु के बाद का संसार
मैं अनजान
मैं खोज का उपक्रम
मैं ध्यानावस्थित
मैं मैं है
किसी व्यक्ति विशेष से
मैं का कोई संबंध नहीं है