मैं क्या बोलूँ

मैं क्या बोलूँ

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मैं क्या बोलूँ अपने बारे में।

क्योंकि खुद न जानू अपने बारे में।

लोग बहुत कुछ कहते है मेरे बारे में।

पर कभी कुछ बुरा नही सुना अपने बारे में।।


दिल को अब, 

कैसे हम समझाए,

वो मानता ही नही है।

और न ही जनता है,

बस नाम, तेरा ही लेता है, 

तेरा ही लेता है ।।


यार करूँ तो क्या करूँ

जो अपनी दोस्ती, 

अमर हो जाये।

कोई तो बात है,

हम दोनों में।

जो हम लोग,

कह नही सकते।

पर दिलों में, 

मेहसूस करते है।

अब मैं क्या इसे बोलूँ

और क्या नाम दे

हम।

खुद बता भी तो, 

नही सकते यारो हम।।


जब से तुमने, 

अपना दोस्त बनाया है।

मेरी तो शैली, 

ही बदल गई।

पहले लिखता था, 

मैं कुछ भी।

अब तो सिर्फ तुम पर,

और,

तुम्हारी प्यारी दोस्ती

पर लिखता हूँ।

क्या नाम दूं मैं इससे

अब।

तुम खुद ही बता दो?

जो बात दिल में है,

उससे हमे बता दो।

तभी तो कुछ मैं बोलूंगा तुम को।


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