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Nikhil Sharma

Others

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Nikhil Sharma

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माज़ी

माज़ी

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(माज़ी का मतलब "बीता हुआ वक़्त")


मेरा माज़ी
मेरे सामने आ गया

किसे फिक़्र है, किसे पता है 
गलती है किसकी, किसकी खता है 
दर्द सहते हैं, चुप रहते हैं 
खुद की आग में, खुद ही जलते हैं 
वो कल जिसे हम छोड़ आये थे 
जाने कहाँ से लौट के आ गया 
मेरा माज़ी
मेरे सामने आ गया

जिन गलियों को हमने छोड़ा है 
खुद की खुशियों का जहाँ दिल तोड़ा है 
जाने क्यूँ इस वक़्त ने,
फिर उनसे ही नाता जोड़ा है 
जो दर्द सीने में देता है

आँखों में रंज भर देता है
मेरी इस तन्हाई में, यह शोर कहाँ से आ गया
मेरा माज़ी
मेरे सामने आ गया

लम्हों ने फिर की साजिश है 
फिर जगी अधूरी ख़्वाहिश है 
जिस ग़म से दूर मैं आया हूँ 
फिर उसी कि, की नुमाइश है 
मेरी हर एक चाहत की, मुझे दास्ताँ सुना गया 
मेरा माज़ी
मेरे सामने आ गया


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