"मानवता"
"मानवता"
मोहन हों या हम हों करीम,
बस फ़र्क है हमारे नाम।
सबसे पहले हम नेक बनें,
मुजलिमों के आएं काम।।
मंदिर मस्जिद दोनों ही,
जगह होती जहाँ इबादत।
हम एक दूजे के साथ रहे,
टूटेगी न हमारी ताकत।।
सद्भावना व समरसता में,
अलौकिक होता अनुराग।
जीवन का सही मायने है तब,
दूजे के लिए करें हम त्याग।।
जाति पाति व धर्म समुदाय,
इंसानियत से न होते हैं बड़े।
जब भी अपने विपदा में हों,
धर्म यही, हम साथ हों खड़े।।
सब धर्मों के ज्ञान का हमको
पढ़ने पर मिलता है सार।
मानवता है सबसे बड़ी,
बस करना सीखें हम प्यार।।
बहुत बड़े हम भक्त हुए,
दुःख में न आएं हम काम।
जीवन मेरा व्यर्थ है बिल्कुल,
क्यूँ न हो बड़ा मेरा नाम।।
बड़े बड़े ज्ञानी पुरुषों ने
प्रेम को माना जीवन आधार।
सद बर्ताव व मीठी बोली से,
प्रसन्न रहे यह घर संसार।।
झूठ कपट व फ़रेब को हम,
जीवन में न कभी अपनाएं।
धर्म, जाति से समाज में हम,
कटुता न कभी हम फैलाएं।