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Neelam Sharma

Others

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Neelam Sharma

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मानव की प्रजाति!

मानव की प्रजाति!

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पड़ा सोच में आदिमानव,पर समझ नहीं उसे आती,

बंदर से मनुष्य बनकर,बनी नयी कौनसी प्रजाति।

पेड़ से गुफा, गुफा से घर,मानव ने बहुत विकास किया,

जा पहुंचा है आज चाँद पर, धरती से निकास किया।


कहां ढूंढता मानव तू ,उक़बा, ख़ुल्द,बहिश्त और जन्नत।

इरम,ग़ैब,कौसर सब यहीं है,तू कर्म कर और मांग मन्नत।

स्वर्ग, बैकुण्ठ, परलोक,सुरलोक और देवलोक भी यहीं है।

प्राकृतिक सौंदर्य ग़र बचाले, स्वर्गिक परिवेश फिर यहीं है।


भारत था कभी स्वर्णिम पक्षी,गर्व अभी तक होता है।

स्वर्गिक उज्ज्वल सा भविष्य,सबकी पलकों में सोता है।

होंगे पूरे जन्नत के सपने,यदि दृढ़ संकल्प हम उठा लेंगे।

शुभस्थ अति शीघ्रम हम अपनी,धरती को स्वर्ग बना लेंगे।


पथिक अकेला अंततः थकता,दो हों तो मुश्किलें बंट जाती

अगर सभी जन लें क़दम साथ तो,पथ की दूरी घटतीजाती

मंज़िल फिर स्वयं दौड़ी आती,जब सब मिलकर बुलाएंगे।

शुभस्थ अति शीघ्रम हम अपनी,धरती को स्वर्ग बना पाएंगे


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