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pawan punyanand

Others

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मानव और प्रकृति

मानव और प्रकृति

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जो भी हैं जीव जगत में,

सभी आज़ादी चाहते है,

लेकिन प्रकृति के

अनुशासन को

सभी जीव अपनाते हैं।


मानव छोड़ उसे,

कोई कहाँ तोड़ पाते हैं,

मानव ही एक जीवमात्र,

जो ज्ञान विज्ञान में जीता है,

प्रकृति को जितने का

प्रयास किया करता है,

नित नये खोज, नई दिशा

उसे तो देती है,

सभी जीवों से श्रेष्ठ कहलाने का

अभिमान भी भर देती है।


पर चूक मानव से

यहीं पर हो जाती है,

प्रकृति से ऊपर स्वयं को,

समझने की भूल उससे

हो जाती है।

नियम प्रकृति का

जब भी मानव

न मान प्रतिकार-स्वर

अपनाता है,

प्रकृति धर रूप

महाकाल का

उसे यह समझाता है,

अनुशासन और नियम-बद्ध

यह प्रकृति है,

तोड़ उसको मानव ना

जी पायेगा,

प्रकृति क्या खत्म होगी,

मानव खत्म हो जायेगा।


अच्छा है , तुम्हारा ज्ञान विज्ञान

नित नई खोज नई उड़ान,

पर मत भूलो, प्रकृति से श्रेष्ठ

स्वयं को समझ,इससे मत खेलो

जीव जगत में श्रेष्ठ तुम,

अच्छा है श्रेष्ठ रहो,

पर श्रेष्ठ होने का अर्थ तभी

जब कर्म तुम्हारा, श्रेष्ठ हो

ध्यान रहे इसका तुम को,

हर संभव सुन्दर श्रेष्ठ प्रयास करो,

प्रकृति के साथ जीने का,

फिर से तुम अभ्यास करो।



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