माँ
माँ
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जाने क्या छुपा कर
रखती हो तुम 'माँ' !
इन खुरदरे से,ओर
उखड़े हुए हाथों में।
जब भी छूती हो तुम
इनसे मेरे चेहरे को,
उदासी उतर जाती है।
बालों को सहलाती हो
जब अपनी जली हुई
इन उँगलियों से, तो
मेरे बुझे लबों पर भी
हँसी जगमगाती है।
जाने क्या छुपा कर
रखती हो तुम 'माँ'!
इन खुरदरे से,ओर
उखड़े हुए हाथों में।
