लम्बी रातें
लम्बी रातें
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तन्हाई आँखों में जब आ कर सो जाया करती है,
कभी-कभी रातें यूँ ही लम्बी हो जाया करती हैं !
इस दिल को फिर चैन कहाँ, धड़कन को आराम कहाँ,
दो आँसू ख़ामोशी के आँखें रो जाया करती हैं,
कभी-कभी रातें यूँ ही लम्बी हो जाया करती हैं !
हर आहट पे चौकस हो, क्यों मन इतना बेबस हो,
माँझी को यह आज समझ उस में खो जाया करती हैं,
कभी-कभी रातें यूँ ही लम्बी हो जाया करती हैं !
दो जोड़ी क़दमों के निशान, संग चले थे जहाँ जहाँ,
जरखेज ज़मीं में भी यादें कंकड़ बो जाया करती हैं,
कभी-कभी रातें यूँ ही लम्बी हो जाया करती हैं!