लिव इन के गलियारो में
लिव इन के गलियारो में


ढूंढ रहे परिवारों को हम,
गुम होकर अंधियारों में ।
पहुंच गया है समय आज तो,
लिव इन के गलियारों में ।।
नहीं सात फेरे अब होते,
नहीं बरातें आती है।
नहीं बैंड बाजे बजते अब,
दिखते कहाँ बराती है।।
एक साथ रहना बस काफी,
शादी हुई विचारों में ।
पहुंच गया है समय आज तो,
लिव इन के गलियारों में।।
काम गवाहों का अब कैसा ,
लड़का लड़की राजी है ।
काम नहीं कोई निकाह का।
क्या समाज क्या काजी है।।
नहीं बचे प्रस्ताव स्वीकृति,
जो कुछ है आचारों में।
पहुंच
गया है समय आज तो,
लिव इन के गलियारों में।।
वर माला का लेन देन अब,
थोथी फकत रिवायत है।
दुल्हा दुल्हन बनने की अब,
कौन पालता आफत है ।
बच्चे पैदा करो साथ रह ।
कानूनी अधिकारों में ।
पहुंच गया है समय आज तो,
लिव इन के गलियारों में।।
जाति मजहब रहे ना कोई,
रहे फकत अब नर मादा ,
शपथ पत्र बस एक काफी है,
नहीं खर्च है अब ज्यादा।।
रहना बुरा नहीं लगता अब,
"अनंत" दुनियादारों में।
पहुंच गया है समय आज तो,
लिव इन के गलियारों में ।।